गीतांजलि पोस्ट/श्रेयांस बैद
जयपुर:- भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ –
संवत २०८० चैत्र शुक्ल प्रतिपदा बुधवार 22 मार्च 2023
यज्ञोवै श्रेष्ठतमं कर्म।
स्वर्ग कामो यजेत्।
अग्निहोत्र है देवयज्ञ सर्वोपरि कर्म
सर्वहितकारी।
वायु मण्डल होता है शुद्ध सुख पाते सभी
प्राणधारी॥
यज्ञ श्रेष्ठतम कर्म सर्वदा जो प्राणी अपनाता है।
लोक और परलोक सुधारे मन वांछित फल पाता है :-पण्डित अनंत पाठक
भारतीय नववर्ष का धार्मिक, पौरानिक व ऐतिहाशिक महत्व:-
चैत्रे मासि जगत् ब्रह्म ससर्ज प्रथमे हनि
शुक्ल पक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति॥
कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की।
उन्होंने इसे प्रतिपदा तिथि को प्रवरा अथवा
सर्वोत्तम तिथि कहा था। इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं।
इस दिन से संवत्सर का पूजन, नवरात्र घटस्थापन, ध्वजारोपण, वर्षेश का फल पाठ आदि विधि-विधान किए जाते हैं।
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसन्त ऋतु में आती है। इस ऋतु में सम्पूर्ण सृष्टि में सुन्दर छटा बिखर जाती है
संवत के महीनों के नाम आकाशीय नक्षत्रों के उदय और अस्त होने के आधार पर रखे गए हैं।
सूर्य में अग्नि और तेज हैं और चन्द्रमा में शीतलता, शान्ति और समृद्वि का प्रतीक सूर्य और चन्द्रमा के आधार पर ही सायन गणना की उत्पत्ति हुई है। इससे ऐसा सामंजस्य बैठ जाता है कि तिथि वृद्धि, तिथि क्षय, अधिक मास, क्षय मास आदि व्यवधान उत्पन्न नहीं कर पाते। तिथि घटे या बढ़े, लेकिन सूर्यग्रहण सदैव अमावस्या को होगा और चन्द्रग्रहण सदैव पूर्णिमा को ही होगा।
नया संवत्सर प्रारम्भ होने पर भगवान की पूजा
करके प्रार्थना करनी चाहिए। हे भगवान!
आपकी कृपा से मेरा एवं समस्त जीवों का वर्ष कल्याणमय हो, सभी विघ्न बाधाएँ नष्ट हों।
दुर्गा जी की पूजन घट स्थापन के साथ नूतन संवत् की पूजा करें। घर को वन्दनवार से सजाकर पूजा का मंगल कार्य संपन्न करें। कलश स्थापना और नए मिट्टी के बरतन में जौ बोए और अपने घर में पूजा स्थल में रखें।
एक प्राचीन मान्यता है कि आज के दिन ही भगवान राम जानकी माता को लेकर अयोध्या लौटे थे। इस दिन पूरी अयोध्या में भगवान राम के स्वागत में विजय पताका के रूप में ध्वज लगाए गए थे। इसे ब्रह्मध्वज भी कहा गया।
यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही देवी शक्तीके आदेश से सृष्टि की रचना की।
श्री विष्णु भगवान ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही प्रथम जीव अवतार (मत्स्यावतार) लिया था।
यह भी मान्यता है कि शालिवाहन ने शकों पर विजय आज के ही दिन प्राप्त की थी इसलिए शक संवत्सर प्रारंभ हुआ।
एक मान्यता यह भी है कि मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही हिन्दू पदशाही का भगवा विजय ध्वज लगाकर हिंद साम्राज्य की नींव रखी।
धार्मिक दृष्टि से फल, फूल, पत्तियाँ, पौधों तथा वृक्षों का विशेष महत्व है। चैत्र मास में पेड़-पौधों पर नई पत्तियों आ जाती हैं तथा नया अनाज भी आ जाता है
जिसका उपयोग सभी देशवासी वर्ष भर करते हैं, उसको नजर न लगे, सभी का स्वास्थ्य उत्तम रहे, पूरे वर्ष में आने वाले सुख -दुःख सभी मिलकर झेल सकें ऐसी कामना ईश्वर से करते हुए नए वर्ष और नए संवत्सर के स्वागत का प्रतीक है ।
12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ।
महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है।
विक्रम कैलेंडर की इस धारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया।बाद में भारत के अन्य प्रांतों ने अपने-अपने कैलेंडर इसी के आधार पर विकसित किए।
प्राचीन संवत :
विक्रम संवत से पूर्व 6676 वर्ष पूर्व से शुरू हुए प्राचीन सप्तर्षि संवत को हिंदुओं का सबसे प्राचीन संवत माना जाता है, जिसकी विधिवत शुरुआत 3076 ईसवी पूर्व हुई मानी जाती है।
सप्तर्षि के बाद नंबर आता है कृष्ण के जन्म की तिथि से कृष्ण कैलेंडर का।
फिर कलियुग संवत का। कलियुग के प्रारंभ के साथ कलियुग संवत की 3102 ईसवी पूर्व में शुरुआत हुई थी।
विक्रम संवत :
इसे नव संवत्सर भी कहते हैं।
संवत्सर के पाँच प्रकार हैं
सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास।
विक्रम संवत में सभी का समावेश है।
इस विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवी पूर्व में हुई।
इसको शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य थे इसीलिए उनके नाम पर ही इस संवत का नाम विक्रम संवत है।
इसके बाद 78 ईसवी में शक संवत का आरम्भ हुआ।
नव संवत्सर :
जैसा ऊपर कहा गया कि वर्ष के पाँच प्रकार होते हैं।
मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क आदि सौरवर्ष के माह हैं। यह 365 दिनों का है। इसमें वर्ष का प्रारंभ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से माना जाता है।
फिर जब मेष राशि का पृथ्वी के आकाश में भ्रमण चक्र चलता है तब चंद्रमास के चैत्र माह की शुरुआत भी हो जाती है। सूर्य का भ्रमण इस वक्त किसी अन्य राशि में हो सकता है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्रवर्ष के माह हैं।
चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है, जो चैत्र माह से शुरू होता है।
चंद्र वर्ष में चंद्र की कलाओं में वृद्धि हो तो यह 13 माह का हो जाता है। जब चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में होकर शुक्ल प्रतिपदा के दिन से बढ़ना शुरू करता है तभी से भारतीय नववर्ष की शुरुआत मानी गई है।
सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को
चंद्रमास ही माना जाता है। फिर तीन ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं।
लगभग 27 दिनों का एक नक्षत्रमास होता है। इन्हें चित्रा,स्वाति, विशाखा, अनुराधा आदि कहा जाता है।
वर्ष 360 दिनों का होता है। इसमें एक माह की अवधि पूरे तीस दिन की होती है।
नववर्ष की शुरुआत का महत्व:
नववर्ष को भारत के प्रांतों में अलग-अलग तिथियों के अनुसार
मनाया जाता है। ये सभी महत्वपूर्ण तिथियाँ मार्च और अप्रैल के महीने में आती हैं।
इस नववर्ष को प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
फिर भी पूरा देश चैत्र माह से ही नववर्ष की शुरुआत मानता है और इसे नव संवत्सर के रूप में जाना जाता है।
गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी
नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है।
१ जनवरी को मनाया जाने वाला विश्वव्यापी इसाई नववर्ष पश्चिमी सभ्यता के कारण हमारे समाज के लोग बहुत ही धूम धाम से मानते हैं ।
भारतीय हिंदू नववर्ष के विषय में जानकारी हो उसकी जानकारी आप तक गीतांजलि पोस्ट द्वारा साझा की गई है ।
आगामी 22 मार्च 2023 बुधवार को अपने हिंदू समाज का
नववर्ष है । चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के ऐतिहासिक महत्व को जानकर अपने भारतिय धार्मिक पौराणिक व ऐतिहासिक परंपरा का पालन करके भारतीय होने का गौरव प्राप्त करेंगे ।