गीतांजलि पोस्ट/विनय शर्मा
सांभर लेक:- अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ राजस्थान (उच्च शिक्षा) की राजकीय शाकम्भर स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सांभर लेक इकाई द्वारा महाविद्यालय में गुरु वंदन कार्यक्रम मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मां शारदे एवं महर्षि वेदव्यास की प्रार्थना एवं दीप प्रज्वलन कर किया गया।
इसके उपरांत महाविद्यालय के संकाय सदस्यों द्वारा सामूहिक सरस्वती वंदना का गायन किया गया। मुख्य वक्ता प्रख्यात शिक्षाविद डॉ. छवि चतुर्वेदी ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिक्षकों को अपनी व्यापक भूमिका को समझकर गुरु बनने का प्रयास करना चाहिए। वह शिक्षण कार्य के साथ-साथ विद्यार्थियों का मार्गदर्शन कर उनकी जीवन की समस्याओं का निराकरण का प्रयास करें। विद्यार्थियों में सांस्कृतिक जीवन मूल्यों का संचार करने का कार्य करें। इससे विद्यार्थियों को उचित समय पर सही मार्गदर्शन मिल पाएगा तथा वे अपनी केरियर संबंधी समस्याओं, तनाव, चिंता, अवसाद आदि से मुक्त हो पाएंगे।
उन्होंने कहा कि विद्यार्थी भी विद्यार्थी के बजाय शिष्य बनने का प्रयास करें ताकि शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच आजीवन का आत्मीय संबंध स्थापित हो सके।
इसके साथ ही चतुर्वेदी ने कहा कि पुरातन भारतीय शिक्षा व्यवस्था में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने गार्गी मैत्रीयी आदि का उदाहरण दिया। हमारी प्राचीन शिक्षा व्यवस्था में कोई भी प्रश्न करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी एवं विचारों की संकीर्णता नहीं थी। उन्होंने प्राचीन गुरु शिष्य परंपरा को आज के समय में किस प्रकार से व्यवहारिक रूप से अपनाया जा सकता है यह भी स्पष्ट किया I
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे एबीआरएसएम, राजस्थान ( उच्च शिक्षा ) के अध्यक्ष डॉ.दीपक कुमार शर्मा ने प्रवक्ता से लेकर गुरु तक की यात्रा को स्पष्ट करते हुए कहा कि जो विद्यार्थी के मस्तिष्क तक पहुंचे, वह प्रवक्ता होता है। जो मस्तिष्क से आगे बढ़कर विद्यार्थी के मन को टटोल लें व जो विद्यार्थी के हृदय की गहराइयों तक उतर सके वह आचार्य हैं और जो इन सबसे कहीं आगे जाकर विद्यार्थी की आत्मा को स्पर्श कर अंतश्चेतना जाग्रत कर सके, केवल वही गुरु कहलाता है।
इसके पश्चात बी. ए. द्वितीय वर्ष की छात्रा सुनीता ने कबीर जी के दोहों का लयबद्ध गायन प्रस्तुत किया। विद्यार्थियों ने गुरुजनों का वंदन कर उनका आशीर्वाद ग्रहण किया। कार्यक्रम का मंच संचालन रुबेन माथुर ने किया। कार्यक्रम के अंत में भगवान सहाय शर्मा ने स्वरचित काव्य पाठ किया एवं सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।