दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए टाडा जैसे सख्त कानून चाहिए!
सवाल: क्या राजनीतिक संरक्षण के बिना राजस्थान लोक सेवा आयोग में यह कैबरे डांस संभव है?? (लेखक-वेद माथुर)
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में सब इंस्पेक्टर (एसआई) भर्ती परीक्षा 2021 को पूरी तरह रद्द कर दिया है। यह फैसला 859 पदों के लिए आयोजित इस परीक्षा में बड़े पैमाने पर पेपर लीक घोटाले के बाद आया है। इस निर्णय से चयनित होकर सब इंस्पेक्टर बन चुके और नौकरी कर रहे लगभग सभी 859 उम्मीदवार दोबारा बेरोजगार हो जाएंगे।(कई जेल में है कई जमानत पर हैं!)
परीक्षा आयोजकों ने खुद पेपर लीक करवाया, अपने परिवार के सदस्यों को चयनित करवाया और प्रश्न पत्र बेचकर नंगा नाच करवाया—ऐसे में इस परीक्षा का निरस्त होना न्यायोचित तो है, लेकिन सवाल यह उठता है कि जिन उम्मीदवारों ने पूरी ईमानदारी से परीक्षा दी और पास की, उनका क्या दोष है? संभव है कि हाईकोर्ट की डबल बेंच या सुप्रीम कोर्ट इन निर्दोष उम्मीदवारों को राहत दे।
फिर जिस परीक्षा का चरित्र किसी वैश्या के चरित्र से खराब हो, उसे पतिव्रता घोषित करना भी अपराध ही है। हाई कोर्ट को इसके लिए साधुवाद।
यह घटना राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) और तत्कालीन सरकार के लिए महज एक तमाचा नहीं, बल्कि एक जोरदार जूता है। विशेष ऑपरेशंस ग्रुप (एसओजी) की जांच में सामने आया कि पूर्व आरपीएससी सदस्य रामूराम रायका ने अपने बेटे देवेश और बेटी शोभा को परीक्षा से एक महीना पहले तीनों सेट के प्रश्न पत्र उपलब्ध कराए थे। रायका और अन्य सदस्य जैसे बाबूलाल कटारा पर व्यापक साजिश का आरोप है। परीक्षा 13 से 15 सितंबर 2021 को हुई थी, जिसमें 7.97 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने आवेदन किया था। लेकिन लीक के कारण पूरी प्रक्रिया संदिग्ध हो गई। हाईकोर्ट ने 28 अगस्त 2025 को यह फैसला सुनाया, जिसमें सरकार का तर्क था कि केवल 68 उम्मीदवारों का नाम सामने आया है, लेकिन अदालत ने पूरी भर्ती को अमान्य घोषित कर दिया।
मेरे मन में बार-बार यह प्रश्न आता है कि गांव में रहने वाले आम उम्मीदवार से लेकर राजस्थान लोक सेवा आयोग के सदस्य तक, किसी को भी कानून का भय ही क्यों नहीं है? क्या यह अकेली ऐसी परीक्षा है जिसमें पेपर लीक हुआ? बिल्कुल नहीं! राजस्थान में आरओ/ईओ परीक्षा 2023, शिक्षक भर्ती परीक्षा 2022 और कई अन्य भर्तियों में भी पेपर लीक के मामले सामने आए हैं। आटे में नमक के बराबर बेईमानी तो शायद हर जगह होती है, लेकिन हमारे राजस्थान लोक सेवा आयोग के आटे में आटा कम और नमक ज्यादा रहता है।
ऐसा तब तक होता रहेगा, जब तक आयोग में सदस्यों के चयन के लिए कठोर मापदंड नहीं बनेंगे। यदि कोई हारे में राजनेता, जाति या धर्म के आधार पर वोट दिलाने वाले नेता, अथवा किसी कवि की बीवी को बिना योग्यता के आयोग का सदस्य बनना नहीं रुकेगा। यदि कोई व्यक्ति जाति या किसी अन्य कारण से योग्यता न होने के बावजूद सदस्य बना है, तो वह इसी के अनुरूप चयन प्रक्रिया में धांधली करेगा—यानी अपनी जाति के लोगों को प्रमोट करेगा।
इंटरव्यू और चयन प्रक्रिया में पूरी ईमानदारी से कार्य होता है, ऐसा कहना मुश्किल है। आरपीएससी ने सब रजिस्ट्रार, आबकारी, आईटीओ, नगर सुधार न्यास और नगर निगम सहित सभी विभागों को भ्रष्टाचार के मामले में बुरी तरह पछाड़ा है। सवाल यह है कि लोक सेवा आयोग के भ्रष्टाचार से चुने गए लोग न केवल ईमानदार उम्मीदवारों का हक मार रहे हैं, बल्कि आगे भी 40 साल तक भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार फैलाएंगे। हाईकोर्ट ने भी आरपीएससी पर कड़ी टिप्पणी की है—कहा कि आयोग ‘गूंगी-बहरी संस्था’ बन गया है, जो युवाओं की चिंता नहीं करता। एसओजी ने 50 ट्रेनी एसआई समेत कई को गिरफ्तार किया है, और पांचवीं चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है।
इस घोटाले से सबसे ज्यादा प्रभावित निर्दोष युवा हैं। लाखों उम्मीदवारों ने सालों की मेहनत बर्बाद होते देखी है। सरकार को अब सख्त कदम उठाने चाहिए—जैसे पारदर्शी परीक्षा प्रणाली, डिजिटल निगरानी और भ्रष्ट सदस्यों पर तत्काल कार्रवाई। अन्यथा, राजस्थान के युवा बेरोजगारी के जाल में और फंसते जाएंगे। यह समय है कि आरपीएससी को सुधारने का, न कि ढकने का। युवाओं का भविष्य दांव पर है—क्या सरकार जागेगी?
यदि सरकार वाकई गंभीर है तो उसे पेपर लीक करने करने वालों से निपटने के लिए टाडा जैसा सख्त और नया कानून बनाना चाहिए।
लेखक-वेद माथुर