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जयपुर ….. सोलर एनर्जी के लिए स्थानीय प्रजातियों के वृक्षों ओर परंपरागत जल स्रोतों का हो रहा अंधाधुंध दोहन ।


भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के मानद प्रतिनिधि बैद ने लिखा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र ।


ग्रीन एनर्जी बनाम भारतीय ज्ञान परंपरा एवं प्राकृतिक विरासत ।

प्रकृति के श्रृंगार का बेतरतीब हो रहा दोहन पर्यावरण विनाश का सूचक ।

पश्चिमी राजस्थान में लगाए जा रहे सोलर प्लांटस की और कर रहे है। जिनके कारण एक तरफ स्थानीय प्रजातियों के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है! जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, सोलर प्लांट के लिए लाखों वृक्षों को काट दिया गया, जो स्थानीय जैवविविधता की भविष्य में बड़ी विपदा का संकेत है। ग्रीन एनर्जी बनाम प्राकृतिक विरासत के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाए ।

ये प्राकृतिक विरासत उन पर बसे पशु पक्षियों के आश्रय स्थल नष्ट हो गए हैं। एक और जहां देश दुनिया भर में जैव विविधता बचाने की मुहिम चलाई जा रही है जो किसानों के लिए जीवन, आजीविका एवं समृद्धि का सूचक है। वहीं सोलर प्लांट लगने से ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन कर शहरी क्षेत्रों में दिखने लगी है जो क्षेत्र उन्हें रास नहीं आ रहा है।

अन्य पक्षियों जीव जंतुओं का ह्यास हुआ है उनके घोंसले नष्ट होने से उनका जीवन खतरे में पड़ गया है।

वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से राज्य वृक्ष खेजड़ी के पेड़ कटाई के विरोध में अकेले खेजड़ली में पिछले 409 दिनों से एवं बीकानेर जिला मुख्यालय पर भी धरना दिया जा रहा है प्रकृति बचाओ के तहत ट्री एक्ट बनाने कई मांग की जा रही है ।

पश्चिमी राजस्थान मौसम आधारित खेती पर निर्भर है पर्यावरण को हो रहे नुकसान से आने वाले समय में बारिश का संकट साफ दिखाई दे रहा है।

लाखों की संख्या में वृक्षों की कटाई पर पुनः वृक्षारोपण व्यवस्था भी कहीं नहीं दिखाई देती जितने वृक्ष लगाने का वादा किया गया उतने वृक्ष फलीभूत हो जाए तो कहीं न कहीं हरियाली दिखाई दे हाल ही प्रदेश में इस बात को लेकर दैनिक भास्कर ने उजागर भी किया कि जितने रु खर्च किए जाते है उतने वृक्ष फलीभूत नहीं हो पाते हैं।

सोलर कंपनियों द्वारा वृक्षारोपण की बात मिथ्या साबित हो रही है उनके द्वारा गौचर,ओरण में वृक्षारोपण एवं विकसित किए जाने पर कार्य किया जाना आवश्यक हैं ।

प्रदेश की आबो हवा बदल रही है उसमें ये जरूरी हो जाता है कि गौचर भूमि कब्जे पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाए जाने उसको मॉडल रूप में विकसित किए जाने लवणीय घास उगाने की आवश्यकता के साथ ग्राम पंचायतो, निगम,नगर पालिका,महानगर में अधिकारियों की भूमिका तय की जाने की जरूरत है जहां गौ मूत्र,जीवामृत गोबर धन से अनेक कार्य किए जाने से भारत की पूर्वसंसकृति जागृत हो सकती है जिसके लिए योजना बद्ध तरीके से कार्य किया जाना आवश्यक है।

:- चारागाह कम होने से पशुओं की संख्या कम हुई कमाई भी घटी :-

पश्चिमी राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में पशुपालन,गौ पालन आजीविका का सबसे बड़ा साधन है।
जिन इलाकों में सोलर प्लांट लगे वहां अधिकतर जमीन पर वर्षा आधारित खेती होती थी।

वे जमीन आगोर, जोहड़, पायतन, गोचर भूमि में दर्ज थी। ऐसे में सालभर पशुओं के लिए चारागाह उपलब्ध थे अब चारागाह कम होने से मजबूरी में पशुपालकों ने पशुओं की संख्या कम कर दी है बीकानेर क्षेत्र में ही हज़ारों की संख्या में पशुधन रखने वाले पशुपालको के पास पशुधन की संख्या दो अंकों में सिमट गई है कारण कम होते चारागाह परेशानी का सबब बन रहे हैं।

सोलर प्लांट ठंडा रखने को रोज बर्बाद हो रहा 26.45 करोड लीटर पानी ।

सोलर एनर्जी के लिए पानी का अंधाधुंध दोहन।

सबसे बड़ी चिंता… सिंचित जमीन पर भी लग गए सोलर प्लांट ।

सिर्फ 1 कंपनी को नहर से सप्लाई, बाकी स्थानीय जलस्रोतों से लिया जा रहा पीने लायक पानी ।

वहीं, सोलर प्लेट्स को साफ और ठंडा एखने के लिए पानी का अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है मोटे आकलन के अनुसार सोलर प्लेटों को ठंडा रखने और उन्हें धोने में रोजाना 26 करोड़ 45 लाख 20 हजार लीटर पानी लगता है। नहर विभाग से केवल एक ही कंपनी को 1.60 क्यूसेक पानी का कोटा स्वीकृत है बाकी सभी कंपनियों में प्लांट ठंडा रखने के लिए पानी सप्लाई का टेंडर दे रखा है ये ठेकेदार नहर,स्थानीय तालाबों या जलाशयों से पानी की चोरी कर रहे हैं।

जिसका सीधा असर स्थानीय जैव विविधता पर पड़ रहा है पश्चिमी राजस्थान में अभी पेयजल के लिए 2000 क्यूसेक पानी की मांग है जो पूरी नहीं हो पा रही है।

प्रदेश में सोलर एनर्जी से लगभग 26452 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर के पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एवं अधिष्ठाता विज्ञान संकाय, प्रो. अनिल कुमार छंगाणी की पिछले 10 वर्षों की शोधों के अनुसार सोलर प्लांट को लगाने से पहले लाखों पेड़ काटे गए, फिर उनकी सफाई व ठंडा रखने के लिए प्रति मेगावाट लगभग 10000 लीटर पानी रोजाना इस्तेमाल होता है। इसमें से अधिकतर पानी नाडी, तालाबों और डिग्गियों से चोरी से लाया जाता है इसका नतीजा ये हुआ कि बीकानेर समेत कई जिलों में पुराने जलस्रोत सूख गए।

पिछले कुछ वर्षों में बीकानेर की कोलायत तहसील में तो 120 में से 100 जलस्रोत सूख गए बिट्स रांची और एमजीएस विवि के पर्यावरण विज्ञान विभाग के संयुक्त शोध में सेटेलाइट डेटा से भी इसकी पुष्टि हुई है।

सबसे बड़ी चिंता कि बात ये है कि अब नहर से सिंचित जमीन पर भी सोलर प्लांट लग गए हैं।

बीकानेर में लगभग हजार हैक्टेयर और फलोंदी में 5 हजार हैक्टेयर सिंचित जमीन पर सोलर प्लांट लग गए हैं।

नहर विभाग के पास अन्य जिलों का आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन अनुमान के मुताबिक जैसलमेर और बाड़मेर में भी लगभग 8 से 10 प्रतिशत सिंचित जमीन पर सोलर प्लांट लग चुके हैं।

ये जमीनें दो-तीन दशक की मेहनत के बाद खेती के लिए तैयार हुई थीं इन खेतों लिए नहर विभाग से जो पानी मिलता था, वो अब सोलर कंपनियों में इस्तेमाल हो रहा है।

फलौदी के भड़ला गांव में देश का सबसे बड़ा सोलर पार्क है। जैसलमेर और बाड़मेर में भी यही हालत है।

भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड मत्स्य पालन पशु पालन डेयरी मंत्रालय भारत सरकार के मानद प्रतिनिधि श्रेयांस बैद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुझाव प्रस्तुत करते हुए उपरोक्त हालतों को देखते हुए राज्य में नवीन नीति का निर्माण किए जाने की महती आवश्यकता की जरूरत एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु विनम्र आग्रह करते हुए पत्र प्रेषित किया हैं।

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