आज होगी नवरात्रि की द्वितीय शक्ति माँ ब्रम्हचारिणी देवी की पूजा अर्चना

गीतांजलि पोस्ट/श्रेयांस बैद

लूणकरणसर:-

संवत्२०८० चैत्र शुक्ल द्वितीया गुरुवार 23 मार्च 2023

द्वितीयं ब्रह्मचारिणी:-
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥

:- मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप नवरात्र के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है।

पं.अनन्त पाठक:- ब्रह्मचारिणी का शाब्दिक अर्थ:- ब्रह्म अर्थात तपस्या और तप और चारिणी अर्थात आचरण करने वाली भगवती। जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया, वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म- वेद, तत्व और तप। श् ब्रह्म श् शब्द का अर्थ है ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। यह स्वरूप श्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता है।

अपने पूर्व जन्म में ये राजा हिमालय के घर पुत्री रुप में उत्पन्न हुई थी। महादेव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने घोर तपस्या की थी । इन्होंने घर को त्यागकर निर्जन वन में विना आहार का सेवन किये तप किया था, इस कठिन तपस्या के कारण माता को तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी आदि नामों से संबोधित किया जाता है।

माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।
इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।
मां ब्रह्मचारिणी का पूजन पूर्ण श्रृद्धा से करने पर माता की कृपा से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है | तथा संकट और आपदों का विनाश होता है अगर आप प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता चाहते हैं, विशेष रुप से छात्रों को मां ब्रह्मचारिणी की आराधना करनी चाहिये। इनकी कृपा से बुद्धि का विकास होता है। नौकरी और साक्षात्कार में सफलता दिलाती हैं मां ब्रह्मचारिणी क्योंकि ये तपस्वी वेष में हैं।

ब्रह्मचारिणी का परीक्षा में सफलता दिलाने का मंत्र:-
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः।।

पूजन विधि:- प्रतिदिन की भाँति आवाहित देवी देवताओं के पूजन के बाद माँता का पूजन करें।
हाथों में फूल लेकर ध्यान करें ।
ध्यान मंत्र:
वन्देवांच्छितलाभाय चन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥
पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥
पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पंच्चामृत, शुद्ध स्नान, वश्त्र, लाल चंदन, रोली,कुमकुम, अक्षत, पुष्प, सुगन्धित द्रव्य, धूप, दीप, नैवेद्य, फल,ताम्बूल, दक्षिणा से पूजन करके प्रार्थना करें।

कवच मंत्र:
त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥

स्तोत्र मंत्र:
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।

उपासना वा जप मंत्र:-
दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

प्रार्थना मन्त्र:-
वन्दे वांचछि लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्।
जप माला कमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्
गौर वर्णा स्वाधिष्ठानास्थितां द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानां ब्रह्मरूपां पुष्पालंकार भूषिताम्
पद्म वंदनापल्ल वाराधराकातं कपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यां स्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्।।

क्षमा प्रार्थना मन्त्र:-
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया।
दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत।
यां गतिं सम्वाप्नोते न तां बह्मादयः सुराः॥
सापराधो स्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके।
इदानीमनुकम्प्योहं यथेच्छसि तथा कुरु॥
अक्षानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्नयूनमधिकं कृतम्‌ ॥
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रेहे।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतमं जपम्‌।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥
या देवी सर्वभू‍तेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।

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