प्रयागराज में अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने संन्यास की दीक्षा ली थी।संन्यास लेने के बाद ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाया गया था जिसका जमकर विरोध हुआ और किन्नर अखाड़े में बड़ी कलह शुरू हो गई।
अब ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर पद से और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को आचार्य महामंडलेश्वर पद से हटा दिया गय है।दोनों को किन्नर अखाड़े से निष्कासित कर दिया है।किन्नर अखाड़े के संस्थापक ऋषि अजय दास ने ये कार्रवाई की है।
राष्ट्रीय हिंदू सेना और पुलिस की संयुक्त कार्रवाई 7 गोवंश की दम घुटने से हुई मौत बैतूल। सोनाघाटी में पुलिस और राष्ट्रीय हिंदू सेना ने संयुक्त कार्रवाई करते हुए गोवंश से भरे ट्रक को पकड़ा है। इस ट्रक में 53 गोवंश ठूंस-ठूंस कर भरे गए थे, जिनमें से सात की दम घुटने से मौत हो गई। ट्रक में तस्करी कर गोवंश को महाराष्ट्र के कत्लखाने ले जाया जा रहा था। इस कार्रवाई में दो तस्करों को भी गिरफ्तार किया गया है, जो भोपाल के रहने वाले हैं।
राष्ट्रीय हिंदू सेना के प्रदेश संयोजक पवन मालवीय ने बताया कि संगठन के पदाधिकारियों को सुबह करीब 6 बजे सागर जिले के गौरक्षकों से सूचना मिली थी कि ट्रक क्रमांक एमएच 29 बीई 4941 में गोवंश को ठूंसकर महाराष्ट्र ले जाया जा रहा है इस पर संगठन के प्रदेश अध्यक्ष दीपक मालवीय ने तत्काल कार्ययोजना बनाकर सोनाघाटी पुलिस को सूचित किया और मिलकर कार्रवाई को अंजाम दिया तहसील गौरक्षा प्रमुख स्वप्निल छोटू पवार ने बताया कि ट्रक को पहचानकर भारती भारती से पीछा किया गया और सोनाखाटी चौकी के पास राष्ट्रीय हाईवे पर रोक लिया गया। पुलिस और हिंदू सेना की संयुक्त टीम ने ट्रक को पकड़कर जांच की तो पाया कि इसमें दो तिरपाल से ढंककर भूसे की बोरियां रखी गई थीं।इसके नीचे दोहरे पाटे से गोवंश को ठूंसकर भरा गया था। विभाग अध्यक्ष दीपक कोसे ने बताया कि जब पुलिस और संगठन के सदस्यों ने ट्रक खोला तो उसमें गोवंश एक-दूसरे के ऊपर लदे मिले। सांस लेने में दिक्कत के कारण सात गोवंश की मौत हो चुकी थी। संगठन के पदाधिकारियों ने तुरंत तिरपाल हटाकर जीवित गोवंश को ऑक्सीजन मिलने की व्यवस्था की। तहसील सह गौरक्षा प्रमुख आशीष यादव ने बताया कि ट्रक से दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जिन्होंने पूछताछ में बताया कि गोवंश को सागर जिले के जंगलों से भरकर महाराष्ट्र के अमरावती ले जाया जा रहा था। गिरफ्तार आरोपी भोपाल के निवासी हैं। प्रखंड अध्यक्ष राजा कुंभारे ने बताया कि तस्करों ने निर्दोष गोवंश को रस्सियों से जकड़कर डबल पार्टीशन की पटिया लगाकर छल्ली के अंदर भर रखा था। ट्रक में कुल 53 गोवंश थे, जिनमें से 7 की दम घुटने से मौत हो गई। पुलिस की मौजूदगी में जीवित गोवंश को त्रिवेणी गोशाला भेज दिया गया है,जबकि मृत गोवंश का पोस्टमार्टम कर उन्हें सुरक्षित दफना दिया गया। इस कार्रवाई में सोनाघाटी चौकीप्रभारी नरेंद्र उइके, एएसआई फतेबहादुर सिंह, आरक्षक महेश नगदे और विशाल राजपूत शामिल रहे। राष्ट्रीय हिंदू सेना की ओर से प्रांत सह संगठन मंत्री शुभम इंगले, जिला अध्यक्ष अनुज राठौर, जिला युवा संयोजक अमित यादव, जिला संयोजक नितिन पटेल, प्रखंड उपाध्यक्ष गोरिशकर गजामे, प्रखंड मंत्री अरविंद मासोदकर, गोलू इंगले, तहसील उपाध्यक्ष राहुल खवादे और महादेव यादव भी इस अभियान में शामिल रहे।
UPI यूजर्स के लिए बड़ा अपडेट, 1 फरवरी से ब्लॉक होंगे ये ट्रांजेक्शन, NPCI ने बदल दिया नियम, तुरंत करें चेक
सिद्धार्थ राव, नई दिल्ली। 1 फरवरी से UPI ट्रांजेक्शन बंद होने का खतरा है. दरअसल, अगर पेमेंट ऐप ट्रांजेक्शन ID में स्पेशल कैरेक्टर यूज करती है तो सेंट्रल सिस्टम उस ऐप से ट्रांजेक्शन को एक्सेप्ट नहीं करेगा। अगर आप UPI पेमेंट ऐप यूज करते हैं तो यह खबर आपके काम की है. दरअसल, 1 फरवरी से कोई भी UPI ऐप ट्रांजेक्शन ID जनरेट करने के लिए स्पेशल कैरेक्टर यूज नहीं कर पाएगी. अगर कोई ऐप ट्रांजेक्शन ID में स्पेशल कैरेक्टर यूज करेगी तो सेंट्रल सिस्टम उस पेमेंट को कैंसिल कर देगा. नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने ये दिशानिर्देश बिजनेस यूजर्स के लिए जारी किए थे, लेकिन इसका असर आम ग्राहकों पर भी पड़ने वाला है।
इसलिए किया जा रहा है बदलाव
NPCI UPI ट्रांजेक्शन ID जनरेट करने की प्रोसेस को स्टैंडर्ड बनाना चाहता है. इसलिए उसने सभी कंपनियों से ट्रांजेक्शन ID में केवल अल्फान्यूमेरिक कैरेक्टर ही जोड़ने के आदेश दिए हैं. ये आदेश 1 फरवरी से लागू हो जाएंगे. इसका मतलब है कि अगर कोई ऐप इन आदेशों का पालन नहीं करती है तो UPI के जरिये पेमेंट पूरी नहीं होगी. आदेशों का पालन करने की जिम्मेदारी ऐप्स पर ही डाली गई है।
पहले भी जारी किए थे आदेश
NPCI ने पहले भी इस प्रोसेस को स्टैंडर्ड बनाने के लिए आदेश जारी किए थे. बीते साल मार्च में आए आदेशों में ट्रांजेक्शन ID को 35 कैरेक्टर में बनाने की बात कही गई थी. इससे पहले ट्रांजेक्शन ID में 4 से लेकर 35 कैरेक्टर तक होते थे. इसे देखते हुए 35 कैरेक्टर की ID जनरेट करने की बात कही गई थी.
महाराष्ट्र: बुलढाना के सरकारी अस्पताल में एक गर्भवती महिला की सोनोग्राफी चर्चा में है. डॉक्टर ने सोनोग्राफी का बारीकी से मुआयना किया तो वह भी चौंक गए, क्योंकि गर्भवती के पेट में बच्चा तो दिखाई दे रहा था. साथ ही इस बच्चे के पेट में भी एक बच्चा दिखाई दे रहा था.
दरअसल, दो दिन पहले जिले के मोताला तहसील के एक गांव से 9 माह की गर्भवती महिला (32 साल) सरकारी महिला रुग्णालय पहुंची. वहां डॉक्टर प्रसाद अग्रवाल ने गर्भवती की सोनोग्राफी की. सोनोग्राफी करते समय उन्हें महिला के पेट में बच्चा तो दिखाई दिया, साथ ही उसी बच्चे के पेट कुछ और भी दिखाई दिया. डॉक्टर अग्रवाल ने और तीन बार महिला की सोनोग्राफी की तो उन्हें दिखाई दिया कि जो पेट में बच्चा है, उसके पेट में भी एक बच्चा है.
The eagle lives for about 70 years, but by the time it reaches the 40th year of its life, it has to take an important decision.
In that condition, three major parts of his body become ineffective-
Claws become longer and flexible and They become incapable of catching hold of the prey.
The beak bends forward and starts creating hindrance in taking out the food.
The wings become heavy, and cannot open fully as they stick to the chest, limiting flight.
Finding food, catching food and eating food…all three processes start losing their edge. He is left with only three options, Either give up the body, or give up your instincts and live on discarded food like a vulture…or else Reestablish yourself as the unchallenged sovereign of the skies. While the first two options are easy and quick, the third is extremely painful and long.
The eagle chooses suffering and restores himself. He goes to some high mountain, builds his nest in solitude, and then starts the whole process over again.
First of all, he breaks his beak by hitting it on the rock..! There is nothing more painful than breaking one’s beak, O King of Birds. Then he waits for the beak to grow again. After that he breaks his claws in the same way and waits for the claws to grow again. After getting new beaks and claws, he plucks out his heavy feathers one by one and waits for the feathers to grow again.
150 days of pain and waiting…and then he gets the same grand and high flight, as new as before.
After this restoration he lived for another 30 years, with energy, honour and dignity.
Nature is there to teach us- Claws are a symbol of grip, beak activation and Feathers set the imagination going.
The desire to maintain control over circumstances, the activity to maintain the dignity of one’s own existence, the imagination to maintain something new in life.
Desire, activity and imagination…all three start becoming weak…including us by the time we reach forty.
Our personality starts to become weak, life seems to be coming to an end in the middle of life, enthusiasm, ambition, energy… go downhill. We also have many options – some simple and some quick.! Something painful… We too must give up the forced flexibility in our lives and show control – “like the claws of an eagle.”
We too will have to show energetic activity by abandoning the lazy mentality. “Like an eagle’s beak.”
We too are stuck in the past, Leaving behind the heaviness we will have to take free flights of imagination- “Like the wings of an eagle.”
If not 150 days, at least one month should be spent in restoring oneself. There will be pain in breaking and scratching what is stuck to the body and mind, but then the eagles will be ready to fly, flights this time and it will be higher, You will be experienced, It will be eternal….!
जयपुर: राजस्थान में नए जिलों के गठन और इनमें से कुछ का दर्जा खत्म करने को लेकर सियासी घमासान के बीच पिछले 43 वर्षों में घोषित जिलों के अब तक सुविधा सम्पन्न नहीं बन पाने पर भी सवाल उठ रहे हैं। बड़ी वजह यही सामने आती है कि सरकारें ऐसे फैसलों को लेकर राजधर्म निभाने में पीछे रह जाती हैं। इसका उदाहरण है परमेश चन्द्र कमेटी की सिफारिश के बावजूद चार शहर-कस्बों को करीब 15 वर्ष तक जिले का दर्जा पाने का इंतजार रहा। सियासी आरोप-प्रत्यारोप के बीच इन दिनों अनूपगढ़ व सांचोर जिले का दर्जा समाप्त होने पर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि इस मसले पर राज्य सरकार का तर्क है कि कनेक्टिविटी बढ़ने के कारण दूरी के आधार पर जिला नहीं बनाया जा सकता।
नए जिले बनाते समय पिछली कांग्रेस सरकार ने तर्क दिया था कि जिलों का आकार घटाने और पिछड़े इलाकों को जिला बनाने से विकास की रफ्तार बढ़ सकती है। इसी आधार पर 17 नए जिले बनाए गए। मौजूदा भाजपा सरकार 9 जिले समाप्त करने के बाद तर्क दे रही है कि किसी भी जिले में कम से कम अपने खर्च लायक राजस्व जुटाने की क्षमता तो हो। हालांकि आदिवासी, रेगिस्तानी क्षेत्रों को राजस्व व आबादी के पैमाने से छूट दी गई है। इस बीच जिलों के विकास को लेकर पड़ताल में सामने आया कि धौलपुर, राजसमंद सहित कई जिलों को देखकर आज भी जिले जैसा अहसास नहीं होता।
वक्त बदला, तर्क बदले:
कांग्रेस शासन भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी रामलुभाया की कमेटी की सिफारिश के आधार पर जिले बनाए। जिला मुख्यालय की अंतिम गांव से दूरी के आधार पर लोगों की सुविधा के लिए अनूपगढ़ व सांचोर को भी जिला बनाया। मौजूदा सरकार भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी ललित के. पंवार की कमेटी की सिफारिश के आधार पर निर्णय किया। न्यूनतम 6-7 तहसील, पहले से उपलब्ध सुविधाएं और जनसंख्या वृद्धि दर जिला बनाए रखने के प्रमुख आधार रहे, वहीं कनेक्टिविटी बढ़ने के कारण दूरी को जिले के लिए आधार नहीं माना।
5 में से 1 ही बना जिला:
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे परमेश चंद्र की कमेटी ने प्रतापगढ़, बालोतरा, ब्यावर, डीडवाना-कुचामन व कोटपूतली-बहरोड़ को जिला बनाने की सिफारिश की, लेकिन 2008 में प्रतापगढ़ को ही जिला बनाया।
इसलिए बचे ये जिले:
सलूम्बर: पर्यटन महत्व वाले किले-महल हैं। आदिवासी क्षेत्र होने से आबादी व घनत्व के पैमाने में रियायत।
बालोतरा: रिफाइनरी से विकास। रेगिस्तान के आधार पर आबादी व घनत्व के पैमाने में रियायत।
खैरथल-तिजारा: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से नजदीक। भिवाड़ी औद्योगिक क्षेत्र व खैरथल मंडी आर्थिक ताकत।
आंकड़ों में यह है स्थिति:
आबादी:राष्ट्रीय स्तर पर एक जिले की औसत आबादी 22 लाख है। 41 जिले रहने पर 16-17 लाख हो गया। उपखंड: 50 जिले होने के समय 10 जिलों में दो से चार उपखंड थे और कुछ उपखंडों में आबादी लगभग 50,000-60,000 थी। वर्तमान में आदिवासी क्षेत्र सलूम्बर तथा मरुस्थलीय जैसलमेर व बालोतरा जिलों में चार-चार उपखंड हैं। वहीं 12 जिलों में 5 से 7 उपखंड हैं।
जिला बनाने के लिए आधार:
पुराने जिले से दूरी, प्रस्तावित जिले में सुविधाओं की स्थिति, जिला बनाने पर आने वाला खर्च, प्रस्तावित जिले की आबादी, नए जिले में उपखंड।
शाही स्नान को लेकर इतिहास और धर्म के जानकारों के बीच अलग-अलग मत हैं। जहां धर्म को जनाने वाले कहते हैं कि, यह परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। उनका मानना है कि, ग्रहों की विशेष स्थिति में किए जाने वाले स्नान को शाही स्नान की संज्ञा दी जाती थी। वहीं इतिहास के जानकार मानते हैं कि. मध्यकाल के दौरान साधु-संतों को विशेष सम्मान देने के लिए राजाओं के द्वारा उन्हें कुम्भ में सबसे पहले स्नान की अनुमति दी गई थी। उनके लाव लश्कर को देखकर ही महाकुंभ के स्नान को शाही स्नान कहा जाने लगा।
कब से कब तक लगेगा महाकुम्भ २०२५ महाकुम्भ मेला प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से प्रारंभ होगा और 26 फरवरी 2025 तक लगेगा। महाकुंभ मेले की अवधि 44 दिनों की है।
महाकुम्भ में स्नान का महत्व क्या है कुंभ मेले में शाही स्नान सबसे महत्वपूर्ण भागों और अनुष्ठानों में से एक है। शाही स्नान के लिए कुछ तिथियां तय की जाती हैं। महाकुम्भ में शाही स्नान लोगों के लिए पूरी जिंदगी में एक बार मिलने वाल अवसर माना जाता है, क्योंकि महाकुम्भ 144 साल बाद आता है।
महाकुम्भ में स्नान करने से क्या फल मिलता है शास्त्रों के अनुसार, महाकुम्भ में स्नान व पूजा करने से कई गुना अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि कुम्भ मेले में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शाही स्नान की तिथियां-
1_पौष पूर्णिमा-13 जनवरी 2025
मकर संक्रांति- 14 जनवरी 2025
मौनी अमावस्या (सोमवती) – 29 जनवरी 2025
बसंत पंचमी- 3 फरवरी 2025
माघ पूर्णिमा- 12 फरवरी 2025
महाशिवरात्रि- 26 फरवरी 2025
कुम्भ मेला कहां-कहां लगता है
कुंभ मेला देश के चार तीर्थ स्थानों पर लगता है।
हरिद्वार, उत्तराखंड में, गंगा नदी के तट पर
मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर
गोदावरी के तट पर महाराष्ट्र के नासिक में
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में, गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर।
कुम्भ कितने होते हैं कुंभ चार तरह के होते हैं, महाकुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और माघ मेला
महाकुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और माघ मेला क्या होता है
महाकुंभ महाकुंभ 144 वर्षों में आयोजित होता है। ऐसी मान्यता है कि महाकुंभ मेला 12 पूर्ण कुंभ मेला के बाद आता है और यह सिर्फ प्रयागराज में ही लगता है।
अर्ध कुंभ अर्ध कुंभ हर 6 वर्षों में लगता है। अर्ध कुंभ दो पूर्ण कुंभ मेला के बीच में आयोजित किया जाता है। अर्ध कुंभ का आयोजन हरिद्वार व प्रयागराज में किया जाता है।
. पूर्ण कुंभ पूर्ण कुंभ का आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों में किया जाता है। यह चार पवित्र स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक व उज्जैन में कहीं भी लग सकता है।
माघ मेला माघ मेला का आयोजन हर साल किया जाता है। इसे छोटा कुंभ भी कहते हैं। यह प्रयागराज में माघ मास में किया जाता है। आमतौर पर यह जनवरी- फरवरी महीने में लगता है।
कितने साल पुराना है कुंभ मेले का इतिहास
कुछ ग्रंथों में वर्णित है कि कुंभ मेला का आयोजन 850 वर्ष पुराना है। महाकुंभ की शुरुआत आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। कुछ कथाओं में बताया है कि कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के बाद से किया जा रहा है। कुछ विद्वानों का मत है कि कुंभ मेला की शुरुआत गुप्त काल से ही हो गई थी। सम्राट हर्षवर्धन से इसके प्रमाण देखने को मिलते हैं। इसके बाद ही शंकराचार्य और उनके शिष्यों द्वारा संगम तट पर शाही स्नान की व्यवस्था की गई थी।
प्रयागराज में कुंभ मेला कब लगता है जब गुरु ग्रह वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में हो तब कुंभ मेला प्रयागराज में लगता हैं |
उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए’ का संदेश देने वाले युवाओं के प्रेरणास्त्रोत, समाज सुधारक युवा युग-पुरुष ‘स्वामी विवेकानंद’ का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) में हुआ।
इनके जन्मदिन को ही राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।उनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रमु्ख कारण उनका दर्शन, सिद्धांत, अलौकिक विचार और उनके आदर्श हैं, जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया और भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी उन्हें स्थापित किया। उनके ये विचार और आदर्श युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। उनके लिए प्रेरणा का एक उम्दा स्त्रोत साबित हो सकते हैं।किसी भी देश के युवा उसका भविष्य होते हैं। उन्हीं के हाथों में देश की उन्नति की बागडोर होती है। आज के पारिदृश्य में जहां चहुं ओर भ्रष्टाचार, बुराई, अपराध का बोलबाला है जो घुन बनकर देश को अंदर ही अंदर खाए जा रहे हैं। ऐसे में देश की युवा शक्ति को जागृत करना और उन्हें देश के प्रति कर्तव्यों का बोध कराना अत्यंत आवश्यक है। विवेकानंद जी के विचारों में वह क्रांति और तेज है जो सारे युवाओं को नई चेतना से भर दे। उनके दिलों को भेद दे। उनमें नई ऊर्जा और सकारात्कमता का संचार कर दे।
स्वामी विवेकानंद की ओजस्वी वाणी भारत में तब उम्मीद की किरण लेकर आई जब भारत पराधीन था और भारत के लोग अंग्रेजों के जुल्म सह रहे थे। हर तरफ सिर्फ दु्ख और निराशा के बादल छाए हुए थे। उन्होंने भारत के सोए हुए समाज को जगाया और उनमें नई ऊर्जा-उमंग का प्रसार किया।सन् 1897 में मद्रास में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था ‘जगत में बड़ी-बड़ी विजयी जातियां हो चुकी हैं। हम भी महान विजेता रह चुके हैं। हमारी विजय की गाथा को महान सम्राट अशोक ने धर्म और आध्यात्मिकता की ही विजयगाथा बताया है और अब समय आ गया है भारत फिर से विश्व पर विजय प्राप्त करे। यही मेरे जीवन का स्वप्न है और मैं चाहता हूं कि तुम में से प्रत्येक, जो कि मेरी बातें सुन रहा है, अपने-अपने मन में उसका पोषण करे और कार्यरूप में परिणत किए बिना न छोड़ें। हमारे सामने यही एक महान आदर्श है और हर एक को उसके लिए तैयार रहना चाहिए, वह आदर्श है भारत की विश्व पर विजय। इससे कम कोई लक्ष्य या आदर्श नहीं चलेगा, उठो भारत…तुम अपनी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा विजय प्राप्त करो। इस कार्य को कौन संपन्न करेगा?’ स्वामीजी ने कहा ‘मेरी आशाएं युवा वर्ग पर टिकी हुई हैं’।स्वामी जी को यु्वाओं से बड़ी उम्मीदें थीं। उन्होंने युवाओं की अहं की भावना को खत्म करने के उद्देश्य से कहा है ‘यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खड़े हो जाओगे, तो तुम्हें सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढ़ेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले ‘अहं’ ही नाश कर डालो।’ उन्होंने युवाओं को धैर्य, व्यवहारों में शुद्धता रखने, आपस में न लड़ने, पक्षपात न करने और हमेशा संघर्षरत् रहने का संदेश दिया।आज भी स्वामी विवेकानंद को उनके विचारों और आदर्शों के कारण जाना जाता है। आज भी वे कई युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत बने हुए हैं।
फतेहपुर | राजस्थान में शेखावाटी के फतेहपुर में दादूपंथ में एक संत भीखजन जी महाराज हुए थे जिनको समाज के कुछ लोगों ने मंदिर से निकाल दिया था उसके बाद संत ने मंदिर के बाहर तपस्या की जिसके प्रभाव से मंदिर में भगवान की मूर्ति ने स्वतः अपना मुख उस दिशा में कर लिया जिस दिशा में संत भीखजन जी महाराज तपस्या कर रहे थे |
बताया जा रहा है लगभग 400 साल पहले की की घटना है जिस समय फतेहपुर में जातिवाद अपने चरम पर था, समाज में कोई छोटा तो कोई बड़ा होता था जिसका प्रभाव लोगों पर ही नहीं बल्कि मंदिर तक भी पहुंच चूका था । फतेहपुर के नगर सेठ आराध्य भगवान् श्री लक्ष्मीनाथ जी का मंदीर भी उससे अछूता नही था उस समय हिंदुओ की ही कुछ जातियों को मंदीर में प्रवेश की दर्शन की अनुमति नहीं थी |
संवत 1683 के समय फतेहपुर में दादू पंथी संतो का खूब प्रभाव था उनमे से ही एक थे आचार्य कुल के संत शिरोमणि भीख जन जी महाराज | हिन्दू समाज के कुछ जातिवादी लोगों ने भीखजन जी महाराज को मंदीर प्रवेश नही करने दिया इससे नाराज होकर भीखजन जी महाराज मंदीर के पीछे इस पोष महीने की सर्दी में बिना कुछ खाये पिये भगवान् की साधना करने लगे जिससे प्रसन्न होकर भगवान लक्ष्मीनाथ जी की प्रतिमा ने भीखजन जी महाराज की ओर मुख कर लिया |
भगवान् की प्रतिमा के मुह फेरने की घटना सारे शहर में फैल गयी लोगों ने मंदिर के पीछे जाकर देखा तो भीखजन जी महाराज साधना में लीन थे तब लोगो को समझ आया की उन्होंने संत का अनादर किया है | सभी लोगो ने संत भीखजन जी महाराज से क्षमा याचना की और सब भक्तो को आदर के साथ मंदीर प्रवेश मिला तब से ठाकुर जी के मंदीर में भेद भाव समाप्त हुआ सबको मंदीर प्रवेश ठाकुर जी के दर्शन का सौभाग्य मिला|
उसके बाद उन्होंने “भीख बावनि” की रचना की भगवान् कृपा करके अपने भक्त पर खुश हुए और अपना मुह भक्त की तरफ घुमा लिया और दर्शन दिया। जो दोहा आज भी मंदीर के मुख्य दुवार पर शोभा पा रहा हैं। “सोलह सो तिरासिये अचाराज कुल कर भीख जन अपनो जानी के दियो दर्श मुख फेर”
छुआछूत को हटाने के लिए सर्वसमाज इनका ऋणी हैं इन्होंने सबके लिए तपस्या की सत्याग्र किया और मंदीर प्रवेश दिलवाया साक्षात भगवान् को धरती पर ले आये जिनकी रचना भीख बावनि पोष महीने की पूर्णिमा को सम्पन हुई इस लिए इसी दिन को भीख पूर्णिमा के रूप मे मनाया जाता रहा है साथ ही संत भीखजन जी महाराज की याद में हर वर्ष पोष माह की पूर्णिमा को शोभायात्रा निकली जाती है | हमेशा की तरह इस बार भी भीखजन जी महाराज की 13 जनवरी को शोभा यात्रा निकाली जा रही हैं |